बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर,
क्यूँकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज़ में रहना.
ऐसा नहीं है की मुझमे कोई ऐब नहीं है,
पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फरेब नहीं.
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन.
क्यूंकि,
एक मुद्दत से मैंने न मोह्हबत की, न दोस्त बदले.
धन्यवाद.
क्यूँकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज़ में रहना.
ऐसा नहीं है की मुझमे कोई ऐब नहीं है,
पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फरेब नहीं.
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन.
क्यूंकि,
एक मुद्दत से मैंने न मोह्हबत की, न दोस्त बदले.
धन्यवाद.