कुछ पल साथ चले तो जाना , रास्ता है जाना पहचाना.
साँसों को सुर दे जाता है , तेरा यूँ सपनों में आना .
मैंने जातां किये तो लाखों , मनं ने मीत तुम्ही को माना .
अब तो हाथ थाम लेने दो ,और कहो ना , ना ना , ना ना
कुछ कहो ना ..
सौ जनम का साथ अपना ,साँस का धड़कन से जैसे ,
आस का जीवन से जैसे ,कैसे कटे साल सोलह ,
श्याम की जोगन के जैसे .झूट के परदे ना ढूँढो ,
एक दूजे के लिए हम ,हाथ मैं कंगन के जैसे ,
प्यास मैं सावन के जैसे ,रूप को दर्पण के जैसे ,
भक्त को भगवन के जैसे .झील सी सिमटी ना बैठो ,
कुछ बहो ना . कुछ कहो ना ..
जानता हूँ थक गयी हो , उम्र के लम्बे सफ़र से ,
सांप से दस्ते शहर से , आस से और आंसुओं से ,
भीड़ के गहरे भावानर से .वक़्त फिरता है सुनो ,
इतना डरो ना . कुछ कहो ना ..
किस तरह लड़ती रही हो ,प्यास से परछाइयों से ,
नींद से , अंगराइयों से ,मौत से और ज़िन्दगी से ,
तीज से ,तनहाइयों से .सब तपस्या तोड़ डालो ,
अब सहो ना, कुछ कहो ना !!
स्याह सन्नाटों मैं हमने ,उम्र कटी है तनहा ,
तंग और अंधी सुरंगें ,इस गुफा से उस गुफा .
सांस थी सहमी हुई सी ,धड़कनों को इक डर ,
इतना तनहा और लंबा ,जिंदगी का उफ़ सफ़र .
दूर मीलों दूर जलाती ,लौ कोई लगती हो तुम ,
तुम हो ,तुम हो ,तुम ही तुम हो ,हो ना तुम , तुम , हो ना तुम .
पल से पल तक जी रहे हैं ,तुम ही पल पल आस हो ना ,
एक पल तो और ठहरो ,एक पल दिखाती रहो ना .
कुछ कहो ना !!