Sunday, January 2, 2011

ज़बान

मेरी ज़बान मेरी हालत बता नहीं सकती
लबों पे रूकती दिलों में समां नहीं सकी !

वो एक बात जो लफ़्ज़ों में आ नहीं सकती 
जो दिल में होना ज़रा ग़ुम तो अश्क पानी है,

के आग ख़ाक को कुंदन बना नहीं सकती
यकीन गुमान से बहार तू हो नहीं सकती,

नज़र ख्याल से आगे तू जा नहीं सकती.
दिलों के रंज फ़क़त अहले दर्द जानते हैं,

तेरी समझ में मेरी बात आ नहीं सकती.
यह सोच-ए-इश्क तो गूंगे का ख्वाब है जैसे

मेरी ज़बान मेरी हालत बता नहीं सकती. 
लबों पे रखती दिलों में समां नहीं सकी,

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