Tuesday, August 17, 2010

जिद्द है या दीवानापन है!!



 यह  कैसी  मीठी  उलझन  है ? 


धुप  तुम्हारी  याद  दिलाती,
छांव  तुम्हारी  ही  बातें  हैं,
आँखे  एक  झलक  को  प्यासी,
भूले  नहीं  भुला  पाते  हैं,



इतना  क्यों  मोहित  यह  मन  है!

तुमसे  मिलाने  को  आतुर  क्यों, 
मेरा  रोम  रोम  रहता  है,
प्यार  सही  है  , पाप  नहीं  है,
क्यों  मेरा  अंतर  कहता  है,



जिद्द  है  या  दीवानापन  है!! 

मिटटी  की  सौंधी  खुशबू  सी,
या  पूजा  की  झांझर  जैसी,
रिमझिम  रिमझिम  बरखा  हो,
तुम  बहती  नदिया  के  सुर  सी,



तुम  मैं  मेरा  बृन्दावन  है  !!!

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