Wednesday, December 1, 2010

तुम हो ,तुम हो ,तुम ही तुम हो , हो ना तुम , तुम , हो ना तुम

कुछ  पल  साथ  चले  तो  जाना , रास्ता   है  जाना पहचाना.  
साँसों  को  सुर  दे  जाता  है , तेरा  यूँ सपनों  में  आना .
मैंने  जातां  किये  तो  लाखों , मनं  ने  मीत  तुम्ही  को  माना .
अब  तो  हाथ  थाम  लेने  दो ,और  कहो  ना  , ना  ना  , ना ना  
 कुछ  कहो  ना  .. 

सौ  जनम  का  साथ  अपना ,साँस  का  धड़कन  से  जैसे  ,
आस  का  जीवन  से  जैसे ,कैसे  कटे  साल  सोलह ,
श्याम  की  जोगन  के  जैसे .झूट  के  परदे  ना  ढूँढो ,
सच  कहो  ना ,कुछ  कहो  ना  .. 

एक  दूजे  के  लिए  हम ,हाथ  मैं  कंगन  के  जैसे ,
प्यास  मैं  सावन  के  जैसे ,रूप  को  दर्पण  के  जैसे ,
भक्त  को  भगवन  के  जैसे .झील  सी  सिमटी  ना  बैठो ,
कुछ  बहो  ना  . कुछ  कहो  ना  ..


जानता  हूँ  थक  गयी  हो , उम्र  के  लम्बे  सफ़र  से ,
सांप  से  दस्ते  शहर  से , आस  से  और  आंसुओं  से ,
भीड़  के  गहरे  भावानर से .वक़्त  फिरता  है  सुनो  ,
इतना  डरो  ना . कुछ  कहो  ना  ..


किस तरह  लड़ती  रही  हो ,प्यास  से  परछाइयों  से ,
नींद  से  , अंगराइयों  से ,मौत  से  और  ज़िन्दगी  से ,
तीज  से  ,तनहाइयों  से .सब  तपस्या  तोड़  डालो ,
अब  सहो  ना, कुछ  कहो  ना  !! 

स्याह  सन्नाटों  मैं  हमने ,उम्र  कटी  है  तनहा ,
तंग  और  अंधी  सुरंगें ,इस  गुफा  से  उस  गुफा .
सांस  थी  सहमी  हुई  सी ,धड़कनों  को  इक  डर ,
इतना  तनहा  और  लंबा ,जिंदगी  का  उफ़  सफ़र .


दूर  मीलों  दूर  जलाती  ,लौ  कोई  लगती  हो  तुम  ,
तुम  हो ,तुम  हो ,तुम  ही  तुम  हो  ,हो  ना  तुम , तुम , हो  ना  तुम .
पल  से  पल  तक  जी  रहे  हैं ,तुम  ही  पल  पल  आस  हो  ना ,
एक  पल  तो  और  ठहरो  ,एक  पल  दिखाती  रहो  ना  .

कुछ  कहो  ना  !!

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