Saturday, August 7, 2010

मेरी जान

जान… तुम ठंडे चाँद की तरह…

मैं ज़लते सूरज की तरह… मेरी जान

चाँद से ढलती न शाम और न ही होता सवेरा…

पर सूरज देता है रंगीनी शाम और सुहाना सवेरा… मेरी जान

ये हकीकत है !!!

जान… मैं सूखे पेड़ सा बेजान…

तुम सुबह की ठंड में पेड़ पर लिपटी ओस के सामान… मेरी जान

पर सूखा पेड़ ही जलकर देता सबको ठंड में चाय की चुस्की के साथ प्यार भरी मुलाकातें…

ये हकीकत है !!!

जान… हजारों को घायल कर रुला देने वाली है तुम्हारी एक मुस्कान…

मेरी मुस्कान न लूट सकती किसी का चैन और न कर पाती किसी को बेताब… मेरी जान

पर मेरी मुस्कान ने मुस्कुराना सिखाया उन लोगों को जिनको करती परेशान तुम्हारी मुस्कान…

ये हकीकत है !!!

जान… तुम समझ सकती हो प्यार का मतलब और दे सकती हो सबको ज्ञान…

मैं अज्ञान… प्यार को कभी समझ न पाया… मेरी जान

पर क्यूंकि किया… किया… और बस किया तुमसे इतना प्यार…

कि वक़्त न निकाल पाया प्यार को समझने का… मेरी जान

ये हकीकत है !!!

“दोस्तों में भी खुदा है…..”

हमने कोशिश बहुत की, पर रह न पाए हम

लिख-लिख कर कविता, उगल दिए सारे अपने गम



झूठ कहते रहे, कि ये सब एक कहानी है

हमको गम से प्यारी, अपनी अनमोल जवानी है



जो करीब थे दोस्त, सबपर उदासी का आलम छाया था

तू झूठ कहता है दोस्त, ये कहकर मुझको समझाया था



मेरी पाती पढ़, एक दोस्त ने अर्ज़ किया मुझसे

मुस्कुरा तू हमेशा, ये शिफारिश है तुझसे



अब सोचता हूँ कि दोस्तों को, और दुःख न देना है

जो मेरे दोस्त हैं उनसबसे, ब्लॉग अपना छुपा लेना है



डर लगता है कि, पकड़ा जाऊँगा मैं फिर से…..

“रब से कुछ न छुपा है….”

“दोस्तों में भी खुदा है…..”