Sunday, May 22, 2016

चोट के निशान को सजा कर रखना




अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना
मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना
दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना
सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो मेंदीपको जला कर रखना

दिल्ली की गर्मी

दिल्ली की जो गर्मी है,
कुछ कर ही नहीं पायेंगे आप 
ऐसी कूलर चला के रखिये
बरना उड़ जायेंगे बनकर भाप!
बिजली तो अक्सर जाती है 
सूरज आग उगलता है 
पनि की भी किल्लत है 
दिल्ली बहुत सताती है !


पसीना टप-टप चूता है
बदन से आग निकलता है
मईजून का महिना तो
दिल्ली में काफी खलता है!

जब कपडे गीले हो जाते हैं
मन गुस्से में झल्लाता है
ब्लू लाइन बस में बैठे-बैठे
बारिश की आस लगाता है!

गलती से जो गर्मी में
कभी बारिश हो जाती है
कसम से हर दिल्लीवासी को
बहुत राहत पहूँचाती है!

पिछले जनम में दिल्ली ने
जाने क्या किए थे पाप
कि भगवान ने गुस्से में दिया
ऐसी भयानक गर्मी का श्राप!