महफ़िल

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वो जा रहे थे महफ़िल में सबको शामिल करके
बोला हमको…. बताया हमको….

दिल की बेचैनी ने चुप रहने दिया हमको और पूछ बैठे उनसे
क्यूँ बुलाया हमको?, क्यूँ बोला हमको?

उनके लबों की खामोशी से हम घबराये ऐसे
किसी महफ़िल में जैसे शामिल थे हम, उनको बिना पूछे

जब सोचा, तो दिल से आवाज़ यही आई है
कि ये उनकी खता नहीं, बल्कि उनकी हमसे खफायी है

तब उनकी खफायी को मिटाने की कसम खाली हमने
किजायेंगे महफ़िल में साथ उनके हम
किछाएंगे महफ़िल में साथ उनके हम

फिर मिठास भरली अपने दिल के कडवे ज़ख्मों में हमने
बनाकर उनकी उदासी को अपने गम का हिस्सा
बदल दैंगे अब वो आशिकी का पुराना किस्सा

चल दिए साथ उनके वो मीलों के रास्ते तय करते
हसते-हसाते बस उनके गमों को मिटाते
कुछ भी कर जाते बस हम उनको हसाते

महफ़िल में पहुंचे तो पुराने दर्द उभरे अपने
बस अपने दर्द को दबाते और उनको हसाते

फिर उनकी बातों से दर्द उबलने लगे अपने
सभी पूछे कि दोस्त अभी हँसा रहे थे पर अब चुप क्यूँ हो इतने ?

हम चुप रहे, कुछ कह सके सबसे
महफ़िल से निकले और दूर हो गए उनसे

कसम खाई थी उनके गमों को पीने की
दूर रह सके, याद आई जब कसम की
लौट आए मुस्कुराते हुए महफ़िल में हम
बस गम पीते गए…. बस गम पीते गए….

जाने कैसे हमारी बेचैनी का अहसास हो गया उनको
रह पाए वो…. और हमसे कह भी पाए वो…..

फिर उनकी आखों में ऐसा उजाला सा देखा हमने
हुआ सवेरामिटा अँधेराऔर गम मेरे लगे थमने

उनकी आँखों ने मेरी आखों से दोस्ती करली
मेरे गमों की तिजोरी सारी खाली करली

ये सच है कि उनसे छुपा पाया मैं गम अपने
धोका सगी आखों ने दिया, जो दिखा रही थीं प्यार के सपने

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