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Thursday, February 9, 2017
Sunday, May 22, 2016
चोट के निशान को सजा कर रखना
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।
मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।
दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।
सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ‘ दीप ‘ को जला कर रखना
दिल्ली की गर्मी
दिल्ली की जो गर्मी है,
कुछ कर ही नहीं पायेंगे आप
ऐसी कूलर चला के रखिये
बरना उड़ जायेंगे बनकर भाप!
बिजली तो अक्सर जाती है
सूरज आग उगलता है
पनि की भी किल्लत है
दिल्ली बहुत सताती है !
पसीना टप-टप चूता है
बदन से आग निकलता है
मई – जून का महिना तो
दिल्ली में काफी खलता है!
जब कपडे गीले हो जाते हैं
मन गुस्से में झल्लाता है
ब्लू लाइन बस में बैठे-बैठे
बारिश की आस लगाता है!
गलती से जो गर्मी में
कभी बारिश हो जाती है
कसम से हर दिल्लीवासी को
बहुत राहत पहूँचाती है!
पिछले जनम में दिल्ली ने
जाने क्या किए थे पाप
कि भगवान ने गुस्से में दिया
ऐसी भयानक गर्मी का श्राप!
Wednesday, August 5, 2015
बारिश और प्रशासन
मुश्लाधार बारिश में भींगते हुए,
कविमन यूँ भंकृत हो गया !
हथेली पर टपकते बारिश की बूंदों की तरह,
शब्दों की माला बुनने को उद्वेलित हो गया !
घन्टे अनवरत बारिश को बरसते देखा,
आसमान में बिजली को कड़कते देखा !
बादलों की आगोश में छटपटाते सूरज को,
धरती पे झाकने को तराशते देखा !
भॅवर को कलियों पर मचलते देखा,
दीवानो को मयखानेमे देखा !
ज़िन्दगी की भागदौड़ में थके थे जो,
उनको भी रिमझिम फुहारों में देखा !
शिक्के की तरह इनके भी दूसरे पहलु को देखा ,
क्या छत वाले क्या बेघर सबको एक साथ सिहरते देखा !
खरे पानी से घिरे शहर को मीठे पानी में डूबते देखा,
जो शहर न रुका है कभी, उनको भी आज ठहरते देखा !
जो शहर न रुका है कभी, उनको भी आज ठहरते देखा !
चारो ओर है सिर्फ पानी पानी,
बाहर क्या घर में भी है पानी !
पर जिम्मेदार है जो इसके,
उनकी आँखों में कहाँ है पानी !
जल ही जीवन है का नारा, दीवारों पे जो लिखा हुआ था !
जलमग्न हो कर वो भी आज, प्रशासनिक वयवस्था पे ऊँगली उठा रहा था !!
Sunday, July 12, 2015
ज़िन्दगी के बदलते पहलु
बेसबब ही कोई मर ना जाये,
उससे कह दो यूं ना मुस्कुराये..
आज मौसम की थी पहली बारिश,
लेके तेरा नाम हम जी भर के नहाए......
आ मिल जाऐ हम सुगंध और सुमन की तरह....
एक हो जाऐ चलो जान और बदन की तरह......
जो गुमसुम सी रहती थी दीवार पे कभी...
वो तस्वीर आज बातें हजार बनाने लगी.....
किसी ने धूल आँखो में क्या डाली....
अब पहले से बेहतर दिखता है।
हम नाराज़ ज़रूर होते है,
पर नफरत नहीं करते...!
बड़ी तो लगनी ही थी भ्रम की चादर....
देखा नहीं था ना पाँव फैलाकर.....
अजब जज्बा है जवानी मैं इश्क़ करने का ,
उम्र जीने की है ,ओर शौक मरने का....
सजदों में गुजार दूँ मैं अपनी सारी जिंदगी...
एक बार वो कह दे मुझे दुआओं से माँग लो....
तुझे शिकायत है कि मुझे बदल दिया है वक्त ने.....
कभी खुद से भी तो सवाल कर क्या तू वही है.....
उससे कह दो यूं ना मुस्कुराये..
आज मौसम की थी पहली बारिश,
लेके तेरा नाम हम जी भर के नहाए......
आ मिल जाऐ हम सुगंध और सुमन की तरह....
एक हो जाऐ चलो जान और बदन की तरह......
जो गुमसुम सी रहती थी दीवार पे कभी...
वो तस्वीर आज बातें हजार बनाने लगी.....
किसी ने धूल आँखो में क्या डाली....
अब पहले से बेहतर दिखता है।
हम नाराज़ ज़रूर होते है,
पर नफरत नहीं करते...!
बड़ी तो लगनी ही थी भ्रम की चादर....
देखा नहीं था ना पाँव फैलाकर.....
अजब जज्बा है जवानी मैं इश्क़ करने का ,
उम्र जीने की है ,ओर शौक मरने का....
सजदों में गुजार दूँ मैं अपनी सारी जिंदगी...
एक बार वो कह दे मुझे दुआओं से माँग लो....
तुझे शिकायत है कि मुझे बदल दिया है वक्त ने.....
कभी खुद से भी तो सवाल कर क्या तू वही है.....
Wednesday, April 1, 2015
दोस्त
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर,
क्यूँकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज़ में रहना.
ऐसा नहीं है की मुझमे कोई ऐब नहीं है,
पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फरेब नहीं.
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन.
क्यूंकि,
एक मुद्दत से मैंने न मोह्हबत की, न दोस्त बदले.
धन्यवाद.
क्यूँकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज़ में रहना.
ऐसा नहीं है की मुझमे कोई ऐब नहीं है,
पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फरेब नहीं.
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन.
क्यूंकि,
एक मुद्दत से मैंने न मोह्हबत की, न दोस्त बदले.
धन्यवाद.
Friday, July 11, 2014
Main Aur Riste
आज पहली बार यह महसूस हुआ की इस दुनिया में अकेलारह गया हुँ.
जो था ही नहीं उसके बगैर मैं तन्हा रह गया हुँ.
मैं छुप छुप कर उसके लिये किताब लिखा किया करता था।
आज मैं अपने ही किताब में तनहा रह गया हूँ,
कभी इन रास्तों में से गुज़र कर उस को घर छोड़ आता था।
आज मैं उन्ही रास्तों में तनहा रह गया हुँ.
कभी वो मुझ से इशारों से बातें किया करती थी।
हँसता हूँ आज मैं अपने ही इशारों में तनहा रह गया हुँ.
यक़ीन था फ़र्ज़ को कभी तो वो लौट आएगी।
रोता था फ़क़त उस के बगैर मैं तनहा रह गया हुँ.
आज ये जान खुश हूँ की मैं तो अपनपुराने दोस्तों में खुश हूँ
और उन्हें जीने के लिए नये रिश्ते बनाने पड़ रहे हैं.
जो था ही नहीं उसके बगैर मैं तन्हा रह गया हुँ.
मैं छुप छुप कर उसके लिये किताब लिखा किया करता था।
आज मैं अपने ही किताब में तनहा रह गया हूँ,
कभी इन रास्तों में से गुज़र कर उस को घर छोड़ आता था।
आज मैं उन्ही रास्तों में तनहा रह गया हुँ.
कभी वो मुझ से इशारों से बातें किया करती थी।
हँसता हूँ आज मैं अपने ही इशारों में तनहा रह गया हुँ.
यक़ीन था फ़र्ज़ को कभी तो वो लौट आएगी।
रोता था फ़क़त उस के बगैर मैं तनहा रह गया हुँ.
आज ये जान खुश हूँ की मैं तो अपनपुराने दोस्तों में खुश हूँ
और उन्हें जीने के लिए नये रिश्ते बनाने पड़ रहे हैं.
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