झुकी हुयी ये ऑंखें तेरी,
सादगी से भरा ये चेहरा तेरा,
आफरीन लग रही है तू इस कदर,
कोई क्यूँ ना मोहब्बत कर बैठे…
तुझे देख के ऐसा लगता है,
फुर्सत में बनाया कुदरत ने तुझे,
डूबा रहा वो जिस अंजुमन में.
हम क्यूँ ना उसी में मर बैठे ........Moved to new Blog https://mittikegullak.blogspot.com/
दर्द कुछ घटता नहीं है, क्या करें ,
दिल कहीं लगता नहीं है, क्या करें.
रात काली स्याह इतनी देर थी,
दिन में कुछ दीखता नही है क्या करें .
बाँध था जो सब्र का बरसों तलक,
बाढ़ आ कर ढा गयी है क्या करें .
ख्वाब - खाली थे, बहुत खामोश थे,
कोई छम से आ गयी हैं क्या करें .
देख कर इक बार उनको रूबरू,ख़त से जी भरता नहीं है क्या करें .
क्या ये तेरी दोस्ती और कैसा ये तेरा दोस्ताना
हसता है तू हमपर ऐसे, सुनकर मेरे प्यार का अफसाना
तू भी झूठा और ये तेरी दोस्ती भी झूठी
तूने बहुत है खींचा, तब ये डोर है टूटी
तुझसे लिपटकर, रोने को जी करता है
पर तू नहीं है मेरा दोस्त, ये सोचकर दिल रोता है
ये कविता नहीं मेरा दर्द रो रहा है
मुझे मालुम है कि तू बस, मेरे दर्द का भूका है
दम निकला दीवाने का, अब तो दीद देदो दिलबर मेरे….मैं दीवाना “आजकल”, अब न आँसू गिरेंगे मेरे….होंठ सूखे हुए हैं, सर्द हवा से मेरेनरम होंगे ये अब, छूकर होंठ तेरेदेख लिया ज़माने की सभी, “ज़ीनत” सी जवानों कोज़माने की सारी “ज़ीनत” तुझमे, ये खबर नहीं है दीवानों कोदम निकला दीवाने का, अब तो दीद देदो दिलबर मेरे….मैं दीवाना “आजकल”, अब न आँसू गिरेंगे मेरे….तू कपडों में लगती, देवी की एक मूरत हैवरना तो तुझमे भोली सी, बस एक सूरत हैमैं जवानी के दिन अपने, जोड़ सकता हूँ उंगलियों परतू कर कुछ ऐसा, कि मैं रातें न जोड़ पाऊँ उंगलियों पर
न समझ मुझको अपना आशिक, मैं न कोई कसम खाऊंगाजब तक जवाँ रहेगी तू, बस तब तक साथ निभाऊंगादम निकला दीवाने का, अब तो दीद देदो दिलबर मेरे….मैं दीवाना “आजकल”, अब न आँसू गिरेंगे मेरे….