झुकी हुयी ये ऑंखें तेरी,
सादगी से भरा ये चेहरा तेरा,
आफरीन लग रही है तू इस कदर,
कोई क्यूँ ना मोहब्बत कर बैठे…
तुझे देख के ऐसा लगता है,
फुर्सत में बनाया कुदरत ने तुझे,
डूबा रहा वो जिस अंजुमन में.
हम क्यूँ ना उसी में मर बैठे ........Moved to new Blog https://mittikegullak.blogspot.com/
दर्द कुछ घटता नहीं है, क्या करें ,
दिल कहीं लगता नहीं है, क्या करें.
रात काली स्याह इतनी देर थी,
दिन में कुछ दीखता नही है क्या करें .
बाँध था जो सब्र का बरसों तलक,
बाढ़ आ कर ढा गयी है क्या करें .
ख्वाब - खाली थे, बहुत खामोश थे,
कोई छम से आ गयी हैं क्या करें .
देख कर इक बार उनको रूबरू,ख़त से जी भरता नहीं है क्या करें .