Saturday, January 8, 2011

मेरी नज़र की तलाश हो तुम



“कहूँ के क्या हो तुम….?”


मेरे लिए मेरी दुनिया हो तुम,
छु के जो गुज़रे वो हवा हो तुम,
मैंने जो मांगी वो दुआ हो तुम,
किया मैंने महसूस वो एहसास हो तुम,
मेरी नज़र की तलाश हो तुम,
मेरी ज़िन्दगी का करार हो तुम,
मैंने जो चाह वो प्यार हो तुम,
मेरे इंतजार की रहत हो तुम,
मेरे दिल की चाहत हो तुम,
तुम हो तू दुनिया है मेरी,
कैसे कहूँ की सिर्फ प्यार नहीं,
मेरी जान हो तुम....................

Sunday, January 2, 2011

ज़बान

मेरी ज़बान मेरी हालत बता नहीं सकती
लबों पे रूकती दिलों में समां नहीं सकी !

वो एक बात जो लफ़्ज़ों में आ नहीं सकती 
जो दिल में होना ज़रा ग़ुम तो अश्क पानी है,

के आग ख़ाक को कुंदन बना नहीं सकती
यकीन गुमान से बहार तू हो नहीं सकती,

नज़र ख्याल से आगे तू जा नहीं सकती.
दिलों के रंज फ़क़त अहले दर्द जानते हैं,

तेरी समझ में मेरी बात आ नहीं सकती.
यह सोच-ए-इश्क तो गूंगे का ख्वाब है जैसे

मेरी ज़बान मेरी हालत बता नहीं सकती. 
लबों पे रखती दिलों में समां नहीं सकी,
इन आँखों में कभी जो झांको तुम,
इन में सभी तस्वीर तुम्हारी है!
कहने  को तो ये नादान दिल है हमारा,
लेकिन इसमें सभी धडकने तुम्हारी है!.......

Friday, December 24, 2010

हया, भारतीय नारी


झुकी हुयी ये ऑंखें तेरी,
सादगी से भरा ये चेहरा तेरा,
आफरीन लग रही है तू इस कदर,
कोई क्यूँ ना मोहब्बत कर बैठे…

तुझे देख के ऐसा लगता है,
फुर्सत में बनाया कुदरत ने तुझे,
डूबा रहा वो जिस अंजुमन में.
हम  क्यूँ  ना उसी में मर बैठे ........

Thursday, December 2, 2010

चाहत

अपने महबूब को चाँद कहने वालो….
टूटे सपनों से चौंक कर उठने वालो….
 कभी देखो मेरे चाँद को जो आसमा में छाया है
हो रही मुलाकात मेरी, ये आज फिर मुझसे मिलने आया है 
मेरे चाँद की खूबसूरती को समेंटने की कोशिश करने वालो, ये कोई सुंदरी की काया है
सदियों से समेंट पाया मैं, आज फिर कोशिश की तो अपने चाँद को और भी खूबसूरत पाया हैI  

Wednesday, December 1, 2010

खामोशी


दर्द कुछ घटता नहीं  है, क्या करें ,
दिल कहीं लगता नहीं है, क्या करें.

रात काली स्याह इतनी देर थी,

दिन में कुछ दीखता नही है क्या करें .

बाँध था जो सब्र का बरसों तलक,
बाढ़ आ कर ढा गयी है क्या करें .

ख्वाब - खाली थे, बहुत खामोश थे,

कोई छम से आ गयी हैं क्या करें .
देख कर इक बार उनको रूबरू,
ख़त से जी भरता नहीं है क्या करें . 

तुम हो ,तुम हो ,तुम ही तुम हो , हो ना तुम , तुम , हो ना तुम

कुछ  पल  साथ  चले  तो  जाना , रास्ता   है  जाना पहचाना.  
साँसों  को  सुर  दे  जाता  है , तेरा  यूँ सपनों  में  आना .
मैंने  जातां  किये  तो  लाखों , मनं  ने  मीत  तुम्ही  को  माना .
अब  तो  हाथ  थाम  लेने  दो ,और  कहो  ना  , ना  ना  , ना ना  
 कुछ  कहो  ना  .. 

सौ  जनम  का  साथ  अपना ,साँस  का  धड़कन  से  जैसे  ,
आस  का  जीवन  से  जैसे ,कैसे  कटे  साल  सोलह ,
श्याम  की  जोगन  के  जैसे .झूट  के  परदे  ना  ढूँढो ,
सच  कहो  ना ,कुछ  कहो  ना  .. 

एक  दूजे  के  लिए  हम ,हाथ  मैं  कंगन  के  जैसे ,
प्यास  मैं  सावन  के  जैसे ,रूप  को  दर्पण  के  जैसे ,
भक्त  को  भगवन  के  जैसे .झील  सी  सिमटी  ना  बैठो ,
कुछ  बहो  ना  . कुछ  कहो  ना  ..


जानता  हूँ  थक  गयी  हो , उम्र  के  लम्बे  सफ़र  से ,
सांप  से  दस्ते  शहर  से , आस  से  और  आंसुओं  से ,
भीड़  के  गहरे  भावानर से .वक़्त  फिरता  है  सुनो  ,
इतना  डरो  ना . कुछ  कहो  ना  ..


किस तरह  लड़ती  रही  हो ,प्यास  से  परछाइयों  से ,
नींद  से  , अंगराइयों  से ,मौत  से  और  ज़िन्दगी  से ,
तीज  से  ,तनहाइयों  से .सब  तपस्या  तोड़  डालो ,
अब  सहो  ना, कुछ  कहो  ना  !! 

स्याह  सन्नाटों  मैं  हमने ,उम्र  कटी  है  तनहा ,
तंग  और  अंधी  सुरंगें ,इस  गुफा  से  उस  गुफा .
सांस  थी  सहमी  हुई  सी ,धड़कनों  को  इक  डर ,
इतना  तनहा  और  लंबा ,जिंदगी  का  उफ़  सफ़र .


दूर  मीलों  दूर  जलाती  ,लौ  कोई  लगती  हो  तुम  ,
तुम  हो ,तुम  हो ,तुम  ही  तुम  हो  ,हो  ना  तुम , तुम , हो  ना  तुम .
पल  से  पल  तक  जी  रहे  हैं ,तुम  ही  पल  पल  आस  हो  ना ,
एक  पल  तो  और  ठहरो  ,एक  पल  दिखाती  रहो  ना  .

कुछ  कहो  ना  !!